नयी-नयी आँखें हों तो…
नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है;
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है;
मिलने-जुलने वालों में तो सारे अपने जैसे हैं;
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है;
मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे;
सन्नाटों में बोलने वाला पत्थर अच्छा लगता है;
चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं;
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है;
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में;
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है।