अजनबी ख्वाहिशें…
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ;
ऐसे जिद्दी हैं परिन्दें कि उड़ा भी न सकूँ;
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया;
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ;
मेरी ग़ैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे;
उसने इस तरह बुलाया कि मैं जा भी न सकूँ;
इक न इक रोज़ कहीं ढूंढ ही लूँगा तुझको;
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ।