डूबने की हर निशांनी काट कर,
चल रही है नाव पानी काट कर..
न हमारा नाम है न काम है,
वो सुनाता है कहानी काट कर..
कट गया वो दोस्तों से चल दिया,
बात मेरी दरमियांनी काट कर..
ज़ुल्म से पर्दा उठादूंगा तेरे,
बोल दूंगा बे ज़ुबानी काट कर..
याद आया है खुदा पर देर से,
आ रहा है वो जवानी काट कर..
रख रहा हूं मैं मेरा सादा मिजाज़,
आपकी जादू बयानी काट कर..
नफरतो का सर कुचल डाला गया,
फेक दी है बदगुमानी काट कर…!!
मंज़ूर देपालपुरी
Tabdlliya jab bhi aati hai mousam ki in aadaon me ,, uska yu badal jana accha nhi lagta ,, SM