टेढ़े मेढ़े रास्तों से चल …
पके आम खेतो से चुरा लाते है
रखवाली करती उस बुढिया की
प्यारी सी गालियाँ ,चल फिर आज सुन आते है।
पतंगो में नाम लिख अब तेरा मेरा
आसमा की सैर चल आज कर आते है
ज़ेब खर्ची के चारआने से
दूरदर्शन वाले चित्रहार के गानो पे
पिपरमेंट की शर्त
चल आज फ़िर लगाते है
स्कूल के प्रेयर में
हो खड़े पीछे तेरे
देख कर उसको
चल आज फ़िर
कानो में फ़ुसफ़ुसाते है
पिछली बेंच पे बैठके
पर्चियों में लिख उसका
जोड़िया ,चल आज फिर , बनाते है
किताबे हो तेरी
कलमे मेरी
चल दर्द के बहाने
होमवर्क आज फिर किसी
और करवाते है
वो खेल था अजब हैं
तोता उड़ , मैना उड़ कह
गाय बकरी उड़ाते थे सब
उस खेल के बहाने
तू और मैं
चल आज फ़िर
उंगुलियों से उंगलिया , मिलाते है
रेत के टीलो में
बना घरोंदे
सुराखों सी खिड़कियों में
चल आज फिर
हाथो से हाथ मिलाते है
प्रोफशनलिस्म से निकल बाहर
गंदे PT शूज़ को भी
चल आज़ फ़िर
वाइट चॉक से चमकाते है
बजते ही घंटिया
छुटटी की
हर लम्हा आज़ादी का
चल आज फिर जी आते है
दौडती भागती जिंदगी में
रख सर यादों के
सिरहाने में
चल आज़ फ़िर सो जाते है
From :: Hritesh Jaiswal