From:- Indresh Tiwari
कौन हो तुम मुझ को बतलाओ, फागुन की मस्त बयार सी
रूप तुम्हरा क्यों लगता है, खिले हुआ कचनार सी
हौले-हौले पग रखती हो, रूक-रूक के आगे चलती हो
सकुचाई, सिमटी सी हो क्यों , बसंती फुहार सी
लाज का रंग क्यों इनता डाला, गाल सुर्ख गुलाब बने
क्यों छिडकी स्नेह बौछारें, रंग सारे ही ख्वाब बने
सरसों सी लहराती चलती, इठलाती चंचल नार सी
शरमाये से तेरे नैना, बोल रहे है मीठे बैना
अलसाई सुबह में जैसे , ढलती है कोई काली रैना
टेसू के दल अधरों पे लेके, चंचल शोख बहार सी
गुण-गुण करते होंठ कनेरी, पत्थर उपजी प्रीत है
मन में जाग उठी उमंगे, ऋतुये गाती गीत है
साँसों ने छेड़ी है सरगम, वीणा और सितार सी
नभ थल छलक रहे सागर से, तन-मन रंग भरे गागर से
बूंद-बूंद रस बरसाती, रिमझिम की एक धार सी
सुधियों की पिचकारी मारी, भीग उठा है मन मेरा
लिए गुलाल प्रीत-प्यार का, क्यों रंग दिया है तन मेरा
बौराया मधुबन हू मै तो, तुम जीवन की सार सी…….