वो कच्चे घड़े बनाती है वो सच्चे घड़े बनाती है ,
धरती माँ की मिटटी को सहेजकर वो अच्छे घड़े बनाती है
अपने कोमल हाथो से देती है नित-रूप नया
प्यार, उमंग, और त्याग से देती है हम सब को मया
संस्कार और संस्कृति से करवाती है वो मेल हमें
जीवन के सारे रहस्यों से खिलवाती है वो खेल हमें
जैसे- जैसे बढ़ते है पग , आती है पैरो में जान
वैसे – वैसे बढ़ता है जग , और बनाता है एक आसमान
उसकी आँचल के तले, उसकी ममता में पले,
उसकी हुंकारों से डरे ,उसकी प्यारो से भरे,
उसका वह आशीश है ,उसका ऊँचा शीश है
उसकी वह अमृत वाणी है , वह तो जगत क्रिपाणी है
जब भी होता दुःख हमें उसके आँखों में आंसू है
सारे कष्टों को सहती है वो तो दुःख पिपासु है
ऐसी मूरत सोचो इस दुनिया में क्या कहलाती होगी?
जो सच्चे ज्ञान को भी देकर, अज्ञानी बन जाती होगी
अपने सारे दुखड़ो को सहकर , मेरे दुखो को सहलाती होगी
मै पवित्र गंगा जल लेकर कहता हूँ की वो माँ कहलाती होगी
की वो माँ कहलाती होगी
From:- Indresh Tiwari