चलो उन राहों पे जिनपे कोई चला न हो
करो भला भले खुद का कोई भला न हो
मिलो सभी से हरदम मुस्कुराते हुए
तुमसे हंसकर चाहे कोई मिला न हो
हर फिक्र भुला के जियो इस तरह
सिर्फ खुशियां हों कोई मसअला न हो
हमदर्द बन के मिलो उस बागबां से
फूल चमन में जिसके कोई खिला न हो
बन के नूर छा जाओ अंधेरों पे तुम
चराग़ जिन घरों में कभी जला न हो
बिखर जाएगा दामन पे बन के अब्र
वो अश्क़ जो मोतियों में ढला न हो
आंधियां हालात की उड़ा ले जाएंगीं उसे
फौलाद हो के जो आग से निकला न हो
गैर के दर्द से क्या होंगीं आँखे नम
मोम की मानिंद जो कभी पिघला न हो
हर एक से दुखी रहेगा ज़माने में वो
साथ ज़माने के जो कभी बदला न हो