पहना रहे हो क्यूँ मुझे तुम काँच का लिबास…
बच गया है क्या फिर कोई पत्थर तुम्हारे पास..!!
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कागज़ के नोटों से आखिर किस किस को खरीदोगे…
किस्मत परखने के लिए यहाँ आज भी,
सिक्का हीं उछाला जाता है
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ज़रूरत’ दिन निकलते ही निकल पड़ती है ‘डयूटी’ पर,
‘बदन’ हर शाम कहता है कि अब ‘हड़ताल’ हो जाए ।।
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मेरी बात सुन पगली
अकेले हम ही शामिल नही है इस जुर्म में….
जब नजरे मिली थी तो मुस्कराई तू भी थी…!!!!!
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न जाने कैसी नज़र लगी है ज़माने की,
अब वजह नही मिलती मुस्कुराने की…