पशु हिंसा पर लिखी गई यह पोस्ट मेरी अंतिम राय!
मांस सभी खा रहे हैं. क्या हिन्दू, क्या मुसलमान। सब। कोई किसी से कम नही. मेरे देश, तुमको नमन. यहां हिंसा ही मानव- धर्म है. तरह तरह के पशुओं को खाना लोगों का भोजन-अधिकार है भाई, तो मैं क्यों तनाव पालूँ? अब सोच लिया है पशु-हिंसा पर लिखना ही बेकार है. मूर्खता है। सौ तर्कों के साथ लोग खड़े हो जाते हैं। अनेक हिंदू महान धर्मनिरपेक्ष हैं, क्योंकि मांसाहारी’ हैं। ब्राह्मण भी। वे अपने हिसाब से तर्क देने लगते हैं। कोई गाय नहीं खाता, तो बकरा या मुर्गा खाता है, और गाय खाने वाले को गरियाता है. गाय खाने वाला सूअर खाने वाले को कोसता है. कुत्ता खाने वाला चिड़िया खाने वाले को गंवार कहता है। लेकिन सब अपने स्वाद और संस्कार से मांस खा रहे हैं और हम मूर्ख उन पर अफ़सोस कर रहे हैं, बूचड़खाने पर रो रहे हैं। अब यह रोना बन्द !!