ज़ुल्फ़ गिरकर संभल रही होगी,
कोई हसरत मचल रही होंगी।
संग-ए-मरमर सरीं बदन होगा,
और निगाहें फिसल रही होंगी।
ये तू नहीं है तेरा तसव्वुर है
रात करवट बदल रही होगी ।
चांद भी मुझसे जल रहा होगा
चांदनी सी पिघल रही होगी।
आग पानी में लग गई होगी
तू नहाकर निकल रही होगी।
Bewafa duniya me saari zindgi koun saat dega tera mosin ,, log to yaha khud apne haton se daffna ker ,, bhull jate hein kaber kounsi thi ,, SM